
सोयाबीन व अन्य फसलों में इल्ली का प्रकोप, रिमझिम बारिश और धूप नहीं निकलने से कीटनाशक भी बेअसर
किसान बोले- हरे रंग की इल्लियों ने पत्तियों को खाकर जालीनुमा बना दिया, तेज बारिश या धूप नहीं निकली तो फसल खराब होने का अंदेशा
खरीफ की मुख्य सोयाबीन व मक्का आदि फसलें लगी हुई हैं। इन दिनों रिमझिम व हल्की बारिश का दौर चल रहा है। इससे फसलों की वृद्धि तो हो रही है, लेकिन तेज बारिश नहीं होने और ठीक से धूप भी नहीं निकलने से विभिन्न प्रकार के कीट फसलों को नष्ट कर रहे हैं। इन कीटों से सबसे ज्यादा नुकसान सोयाबीन और इसके बाद मक्का की फसल को रहा है। क्षेत्र के किसानों का कहना है कि हरे रंग की इल्लियों ने सोयाबीन की पत्तियों को खाकर जालीदार बना दिया है। इल्लियों को खत्म करने के लिए किसान कीटनाशक का छिड़काव कर रहे हैं लेकिन रुक-रुककर हो रही रिमझिम बारिश से दवा का असर कम हो रहा है। इससे इल्ली का प्रकोप कम होने के बजाय बढ़ रहा है। कृषि विभाग के अनुसार जिले में सोयाबीन का कुल रकबा 2.63 लाख और मक्का का 8100 हेक्टेयर है।
मक्का के खेतों में पहुंची। देखा कि दोनों ही फसल के पौधा करीब डेढ़ से दो फीट तक बढ़े हो चुके हैं। ज्यादातर पौधे इल्लियों की चपेट में दिखे। एक पौधे की आधी से ज्यादा पत्तियों को इल्लियों ने खराब कर दिया। पत्तियों पर हरे रंग की इल्लियां चलती दिखी। इल्लियों को नष्ट करने के लिए खेतों में कीटनाशक का छिड़काव कर रहे किसान ने बताया कि पिछले एक-दो सप्ताह से सोयाबीन व मक्का की फसल में इल्लियों का प्रकोप ज्यादा बढ़ गया है। किसान गिरिराज सिंह ने बताया तेज बारिश में इल्लियां व अन्य कीट स्वतः ही खत्म हो जाते हैं, लेकिन कई दिनों से तेज बारिश नहीं होने से कीट की समस्या बढ़ रही है। अभी रिमझिम व रुक-रुककर बारिश हो रही है, ऐसे में कीटनाशक का असर भी कम हो जाता है। इससे कीट नष्ट होने की बजाय बढ़ रहे हैं और पत्तियों को चट कर रहे हैं। आरटीओ कार्यालय के पास खेत में मौजूद किसान मुत्री बाई कुशवाह ने बताया कि उन्होंने सोयाबीन और मक्का दोनों फसल लगाई है। वर्तमान में सोयाबीन व
मक्का के पौधे तो बढ़ रहे हैं लेकिन इल्लियों के कारण पत्तियां पूरी तरह खराब हो रही हैं। यह इल्ली पत्तों को खाने के साथ ही धीरे-धीरे तने में भी पहुंच रही है। इनको खत्म करने के लिए कीटनाशक का छिड़काव कर रहे हैं। अगर आगामी दिनों में तेन बारिश या फिर धूप नहीं निकली तो इल्ली का प्रकोप बढ़ जाएगा। फिर वह धीरे-धीरे फल में पहुंचकर पूरी फसल ही चौपट कर देगी। यही स्थिति अन्य किसानों की सोयाबीन व मक्का की फसल में भी बनी हुई है।
आसपास के क्षेत्रों में सोयाबीन व
फसलों पर दवा का छिड़काव करना जरूरी
एक्सपर्ट व्यू अमूमन
इल्ली/कीट
मिली/हेक्टेयर या बीटा सायफ्लूचिन
डॉ. डीके तिवारी पत्तों को कृषिट्क्षानिक, केक्केि काटने व रस
चूसने वाली होती है। बादल छाने, रिमझिम बारिश, रुक-रुककर बारिश होने से इल्ली/कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है। वैसे तेज बारिश होने से इल्लियां पत्तियों से जमीन पर गिरकर मर जाती है। पत्ती खाने वाली इल्लियों (सेमीलूपर तंबाकू चने की इल्ली) तथा रस चूसने वाले कीट जैसे सफ़ेद मक्खी एवं तना छेदक कोट (तना मक्खी/चक्र भंग) नियंत्रण एवं वर्तमान में जिन किसानों के खेत में इल्लियों का प्रकोप है तो वह कीटनाशक थायमेथोक्स लैम्ब्डा सायहलोथ्रिन 125
+ एमीडाक्लोप्रिड (350 मिली/हेक्टेयर) या इंडोक्साकार्ब (333 मिली/हेक्टेयर) का छिड़काव करें। 15-20 दिनों की अवधि वाली फसल में किसानों को पत्ती खाने वाले कीटों से सुरक्षा के लिए फूल आने से 4-5 दिन पहले तक क्लॉरेंट्रानिलिप्रोल 150 मिली/हेक्टेयर का छिड़काव कर सकते हैं। इससे फसलों में इल्ली/कीटों का प्रभाव कम हो जाएगा। फोटो कैप्शन फोटो 1 इनसेट इस प्रकार पत्तियों में इल्ली दूसरे चित्र में कीटनाशक दवा का छिड़काव करता किसान तीसरे चित्र में इस प्रकार इल्लियों व कीट के प्रकोप से खराब हो गई सोयाबीन की पत्तियों
सेमी लूपर कीट सभी फसल कोचट कर जाता
कृषि विज्ञान केंद्र से मिली जानकारी अनुसार सेमी लूपर कीट वैसे सभी फसलों को चट कर कर जाता है। लेकिन सोयाबीन के साथ मक्का फसल को काफी नुकसान पहुंचा रहा है। इसके साथ ही स्टेम बोरर, गर्डल बीटल सहित अन्य कीट फसलों को नुकसान पहुंचाने में लगे हुए हैं। गर्डल बीटल कीट मक्का की फसल में पत्तियों से होते हुए उसके तने को पोला कर देता है और फलों में भी पहुंच जाता है।
फसल में कीट के प्रभाव के पहले खेतों में खरपतवार की समस्या थी, जिससे निजात पाने के लिए कीटनाशक का छिड़काव किया और निंदाई भी करना पड़ी। कुछ किसानों के खेत में लोह व सल्फर की कमी से पत्तियां पीली पड़ने लगी। सल्फर की पूर्ति करने के लिए किसानों ने खेत में जिंक सल्फेट आदि का छिड़काव किया। अब फसल में कीटों को प्रकोप बढ़ता जा रहा है। इससे ज्यादातर किसान परेशान हैं। किसानों का कहना है कि इस प्रकार की समस्या से उन्हें हर साल जूझना पड़ता है।