चुनौती को अवसर में बदल आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश गढ़ रहे हैं शिवराज सिंह चौहान

भोपाल, 21 मार्च 2021 सदी की सबसे भयंकर प्राकृतिक आपदा – कोरोना महामारी, जिसने समूचे विश्व को हिला कर रख दिया, से जूझना तथा उससे प्रदेश को सफलतापूर्वक न्यूनतम हानि के साथ बाहर निकाल ले जाना किसी भागीरथ प्रयास से कम नहीं था। कोरोना महामारी ने जन-स्वास्थ्य को तो प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया ही, प्रदेश की अर्थ-व्यवस्था की कमर तोड़ कर रख दी। एक ओर हर नागरिक को कोरोना से बचाव व उपचार के लिए नि:शुल्क एवं उत्कृष्ट चिकित्सा सुविधा देना तथा दूसरी ओर लॉकडाउन से ध्वस्त व्यापार, व्यवसाय एवं सेवा क्षेत्र को नवजीवन देने का कार्य वही व्यक्ति कर सकता है, जिसके जीवन का एकमात्र उद्देश्य जनता जनार्दन की सेवा करना हो।

मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने गत एक वर्ष की अल्प अवधि में यह कार्य कर दिखाया है। उन्होंने गंभीर चुनौती को अवसर में बदला तथा न केवल प्रदेश में कोरोना के संक्रमण को प्रभावी ढंग से रोका, कोरोना पीड़ितों को सर्वश्रेष्ठ इलाज मुहैया कराया, टीकाकरण अभियान का सफल संचालन किया अपितु मृतप्राय अर्थ-व्यवस्था में नवजीवन का संचार भी किया।

23 मार्च 2020 – यही वह दिन था, जिस दिन श्री शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार मध्यप्रदेश की बागडोर मिली। कोरोना महामारी ने प्रदेश में पाँव पसार लिए थे और उसकी रोकथाम एवं उपचार की कोई व्यवस्था नहीं थी। श्री शिवराज सिंह चौहान को इस संकट का भली-भांति अंदेशा था। इसीलिए वे शपथ ग्रहण करने के पश्चात सीधे मंत्रालय गए और कोरोना की व्यवस्थाओं के संबंध में बैठक ली। फिर युद्ध स्तर पर कोरोना के संक्रमण को रोकने तथा हर कोरोना पीड़ित को सर्वश्रेष्ठ इलाज देकर स्वस्थ करने का कार्य प्रारंभ हुआ। प्रदेश में आईआईटीटी अर्थात इन्वेस्टिगेट, आईडेंटिफाई, टेस्ट एंड ट्रीट की रणनीति पर प्रभावी ढंग से कार्य किया गया। मुख्यमंत्री श्री चौहान प्रतिदिन वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से प्रत्येक जिले के साथ कोरोना की स्थिति एवं व्यवस्थाओं की समीक्षा करते थे और एक-एक गंभीर मरीज के इलाज की स्वयं मॉनिटरिंग करते थे। उनके लिए हर जान कीमती थी, जिसे वे गँवाना नहीं चाहते थे। परिणाम था कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण, कोरोना रिकवरी रेट का निरंतर बढ़ना और मृत्यु दर का न्यूनतम होना।

लाकॅ डाउन होते ही एक बड़ी समस्या थी, मध्यप्रदेश के मजदूरों का देश के कई राज्यों में फँसा होना और अन्य राज्यों के मजदूरों का मध्यप्रदेश में होना। इन सब के खाने, आवास, दवाइयों आदि की व्यवस्था कोई सरल कार्य नहीं था। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह ने संकल्प लिया कि हर मजदूर को चाहे वह मध्यप्रदेश का हो अथवा बाहर का, सभी आवश्यक सुविधाएँ दी जाएंगी। रोटी, पानी, आवास से लेकर उनके लिए जूते-चप्पलों तक की व्यवस्था सरकार द्वारा की गई। मजदूर जहाँ फँसे थे, वहीं उनके खातों में सहायता राशि डाली गई। इसके बाद समय मिलते ही विशेष ट्रेन एवं बसों द्वारा सभी मजदूरों को मध्यप्रदेश वापस लाया गया। साथ ही दूसरे प्रांतों के मजदूरों को मध्यप्रदेश की सीमा पर छोड़ने के लिए भी हजारों की संख्या में बस लगाई गईं। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान का संकल्प था कि ‘मध्यप्रदेश की धरती पर कोई भूखा नहीं सोएगा तथा कोई भी मजदूर पैदल चलकर अपने घर नहीं जाएगा’। उन्होंने अपने दोनों संकल्पों को शत-प्रतिशत पूरा किया।

तीसरी बड़ी चुनौती थी, किसानों की पक चुकी फसल को समर्थन मूल्य पर खरीदने की। कोरोना का संक्रमण लगातार बढ़ रहा था, ऐसे में यह कार्य आसमान से तारे तोड़ने जैसा ही प्रतीत होता था। श्री शिवराज सिंह चौहान की विशेषता है कि वे कभी हार नहीं मानते। चुनौती जितनी बड़ी होती है उनका हौसला उतना बढ़ता जाता है। समर्थन मूल्य पर खरीदी के लिये कोरोना संबंधी सभी सावधानियों का पालन करते हुए पूरी व्यवस्था की गई। असंभव दिखने वाला कार्य ऐसा हुआ कि पूरे देश ने उसका लोहा माना। पंजाब राज्य को पीछे छोड़ते हुए मध्यप्रदेश में समर्थन मूल्य पर सर्वाधिक एक करोड़ 29 लाख मीट्रिक टन गेहूँ की खरीदी की गई। कोरोना संकटकाल में यह उपलब्धि छोटी नहीं थी।

ध्वस्त अर्थ-व्यवस्था में किसानों और मजदूरों को राहत पहुँचाने के बाद अब सरकार का ध्यान उन छोटे-छोटे पथ व्यवसायियों पर गया, जो शहरों एवं गाँव में खोमचे, ठेले लगा कर और फुटपाथ पर बैठकर अपनी आजीविका चलाते थे। इनका काम-धंधा पूरी तरह बंद हो गया था। इनके सामने आजीविका का गहरा संकट था। केंद्रीय प्रधानमंत्री स्वनिधि योजना के अंतर्गत शहरी पात्र व्यवसायियों को 10-10 हजार रुपए की ऋण व्यवस्था की गई थी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने इसे आगे बढ़ाते हुए मध्यप्रदेश में न केवल शहरी पथ व्यवसायियों बल्कि ग्रामीण पथ व्यवसायियों के लिए भी बिना ब्याज एवं बैंकों को बिना गारंटी दिए 10-10 हजार रूपये की कार्यशील पूँजी की व्यवस्था की। साथ ही महिला स्व-सहायता समूहों को सशक्त एवं आत्म-निर्भर बनाने के लिए बैंक लिंकेज के माध्यम से उन्हें अत्यंत कम ब्याज दर पर ऋण दिलवाया गया।

इसके अलावा सामाजिक सुरक्षा पेंशन की अग्रिम राशि का भुगतान, रसोइयों को मानदेय, विशेष रूप से पिछड़ी हुई जनजातियों को आर्थिक सहायता, विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति का भुगतान, लघु वनोपज के समर्थन मूल्य में वृद्धि, निर्माण श्रमिकों को सहायता राशि, संबल योजना के अंतर्गत विभिन्न प्रकार की सहायता, बच्चों के लिए पोषण आहार की राशि का प्रदाय आदि ऐसे कदम थे, जिन्होंने मृत प्राय अर्थ-व्यवस्था के लिए संजीवनी का कार्य किया। किसानों को केन्द्र सरकार की ओर से मिलने वाली सम्मान निधि की राशि 6 हजार रूपये वार्षिक के साथ मध्यप्रदेश सरकार ने भी 4 हजार अपनी ओर से दिये जाना प्रांरभ किया। इससे किसान सम्मान निधि की राशि बढ़कर 10 हजार रूपये वार्षिक हुई और छोटे किसानों के लिए बड़ी राहत बनी।

कोरोना के संकट में सभी वर्गों को तात्कालिक सहायता एवं राहत पहुँचाने के बाद अब नंबर था, प्रदेश के विकास एवं प्रगति तथा जनता के कल्याण के स्थाई कार्य करने का। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के आत्म-निर्भर भारत की अवधारणा को मूर्तरूप देने के लिए सर्वप्रथम मध्यप्रदेश में आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश का रोड मैप बनाया गया। इसके चार प्रमुख घटक रखे गए- शिक्षा एवं स्वास्थ्य, सुशासन, अधोसंरचना विकास तथा अर्थ-व्यवस्था एवं रोजगार। देश भर के विषय-विशेषज्ञों तथा नीति आयोग के सदस्यों से कई दौर की चर्चा के बाद न केवल आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश का रोड मेप तैयार किया गया अपितु उस पर तेज गति से कार्य भी प्रारंभ कर दिया गया।

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