
एक फोटो देखकर बदल गई जिंदगी…
शाजापुर। वह शख्स भी खास था उसका गले में डला या बैग में रखा उपकरण भी विशेष था। लोग इस शख्स और उसके उपकरण का ेदेखकर एक जमाने में सावधान की मुंद्रा में खड़े हो जाते थे। अपने इशारों पर दुनिया चलाने वाले लोग भी उसके इशारे पर उठते – बैठते और अपने चेहरे के हाव-भाव बनाते थे। वह शख्स कोई ओर नहीं बल्कि फोटोग्राफर है जिसने अपने कैमरे रुपी उपकरण से कितनी सदियों में इस दुनिया के हर रंग देखे हें। हालांकि वर्तमान डीजिटल युवा पीढ़ी को तो पता भी नहीं होगा कि कभी कैमरे से क्लीक की जाने वाली तस्वीरें बेरंग यानि ब्लेक एंड व्हाईट हुआ करती थी।
डार्क रुम में फिल्म की धुलाई का सफर धीरे-धीरे डीजिटल कैमरों और अब मोबाईल कैमरों तक आ गया है। फोटोग्राफी न सिर्फ एक विज्ञान बल्कि कला भी है। ये वो पैशा, वो जुनून वो शौक वो जज्Þबात हैं कि अपना कैमरा गले में डालकर फोटोग्राफरों ने जिंदगी के हर पल को कैद करने की कोशिश की है। सुख-दु:ख, घटना, दुर्घटना, समारोह या ऐसा कोई अवसर नहीं रहा जिनकी यादों को तस्वीरों में न संजोया हो। आज फोटोग्राफी का क्रेज बढ़ गया है। अब हर कोई फोटोग्राफर है। बच्चे, बड़े, बूढ़े, महिला और बच्चे सभी फोटोग्राफर हे, लेकिन उनकी ये फोटोग्राफी अपने खास पलोें को यादगार बनाने का शौक भर है। लेकिन अपने पुराने दिनों से लेकर डीजिटल युग तक जिन फोटोग्राफरों ने फोटोग्राफी का सफर तय किया है वह इस डीजिटल क्रांति में अपने हुनर में पारंगत होने में लगे हुए हैं।
पहले काम सीखा फिर खरीदा कैमरा…
शहर में कोई सार्वजनिक आयोजन हो, कोई समारोह हो या कहीं कोई दुर्घटना हर पल को सहेजने के लिए जिसकी याद शहरवासियों को सबसे पहले आती है वह है फोटोग्राफर। अंतर्राष्टÑीय फोटोग्राफी दिवस पर हम शहर के कुछ ऐसे ही हुनरमंद फोटोग्राफरों से परिचय करवाने जा रहे हैं, जो मौसम के हर मिजाज से पंगा लेकर अपने काम को करने निकल जाते हैं। फिर मौसम ठंडा हो, गर्म हो या फिर धूंआधार बरसात ही क्यों न हो रही हो ये लोग न रुकते हैं न थकते हैं। ऐसे ही फोटोग्राफर हैं विजय व्यास, जिन्हें ब्लेक एंड व्हाईट फोटो में आई तस्वीर को देखकर फोटोग्राफी का ऐसा जुनून चढ़ा कि उन्होंने इसे ही अपना पेशा बनाने की ठान ली। उनका नाम है विजय व्यास, जिन्हें शहरवासी बंटी के नाम से भी जानते हैं। श्री व्यास ने बताया कि रील कैमरे से जब वे किसी को फोटो खिचते देखते तो उन्हें भी इस उपकरण को चलाने का मन करता था। इसके लिए उन्होंने पहले बिना पैसों में एक फोटो स्टूडियो पर काम सीखा। तीन सालों की कड़ी मेहनत के बाद जब वे इस काम में पारंगत हो गए तो फिर खुद का कैमरा लाकर उन्होंने अपना काम शुरु कर दिया। श्री व्यास आज किसी पहचान के मोहताज नहीं है और आज के डीजिटल युग में भी विजय उर्फ बंटी व्यास के नंबर हर मोबाइल में मिल जाया करते हैं और कहीं भी कोई आयोजन होने पर लोगों के मोबाइल में अनायास ही यह नंबर डायल हो जाता है और सूचना उन तक पहुच जाती है। आज श्री व्यास एक प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के लिए भी काम करते हैं और सिंहस्थ-2016 में उनके द्वारा क्लीक किए गए फोटो के लिए उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है।
शादी समारोह से शुरु किया काम, आज पूरे शहर में है उनका नाम…
शहर के ऐसे ही एक फोटोग्राफर हैं जिन्होंने तंग हाली से गुजरते हुए शादी समारोह के फोटो वीडियो शूट का काम शुरु किया था। अपने काम के प्रति जुनून से इन्होंने अपना अलग मुकाम हासिल किया है। हम बात कर रहे हैं कृष्णकांत कारपेंटर (केशू) की जो आज शहर में केके के नाम से मशहूर हो चुके हैं। इनके द्वारा सोश्यल मीडिया पर डाली गई पोस्ट को हर बार हजारों लाईक मिलते हैं और लोग हर समारोह में इन्हें ही याद करते हैं। ऐसे ही फोटोग्राफर है भगवानदास बैरागी, जो बरसों से फोटोग्राफी के क्षेत्र में काफी पुराने हैं और मीडिया के क्षेत्र में उनसे ज्यादा मेहनती व्यक्ति शायद ही कोई हो। कहीं से भी कोई कॉल आने पर श्री बैरागी सारे काम छोड़कर वहां पहुंच जाते हैं। इनके काम का जुनून का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि ये कहीं भी कोई घटना या समारोह की जानकारी मिलते ही अपनी साइकिल से दौड़ लगा जाते थे। फिर सफर कितना ही लंबा क्यों न हो इनके जेहन में एक ही बात रहती थी कि अच्छे से अच्छा फोटो लेकर उसे अपने पेपर में प्रकाशित करना है।
एक फोटो देखकर बदल गई जिंदगी….
शहर के एक और फोटोग्राफर हैं जिनका नाम इस सूची में शामिल न करना इस पेश और इस हूनर के साथ नाइंसाफी होगी। ये फोटोग्राफर हैं मुकेश राठौर, जिन्हें कैमरे का शौक लगा और ऐसा लगा कि आज फोटोग्राफर के रुप में इनकी पूरे जिले में पहचान बनी हुई है। इनकी फोटोग्राफी का सफर पुराने समय के फोटोग्राफरों की पूछ परख और आवश्यकता को देखकर शुरु हुआ। जब इन्होंने देखा कि शादी समारोह के लिए दूल्हा-दुल्हन से भी ज्यादा एक फोटोग्राफर को तवज्जो देकर उसकी आवभगत की जा रही थी। तभी से इन्होंने इसे अपनाने का फैसला कर लिया और एक फोटो स्टूडियो पर बिना पगार की नौकरी कर ली। इनका जुनून इस कदर था कि ये स्कूल की छुट्टि होते ही घर जाने के बजाए स्टूडियो जाकर बैठ जाते और फोटोग्राफर के इशारे पर लोगों के चाल-ढाल को बदलते देखते थे। जब ये इस हुनर में पारंगत हो गए तो इन्होंने इसे ही अपना पैशा बनाने की ठान ली। आज श्री राठौर किसी पहचान के मोहताज नहीं है। इन्होंने भी ब्लेक एंंड व्हाईट से डीजिटल होते फोटोग्राफी के सफर को जिया है और आज फोटोग्राफी की यदि कहीं बात आती है तो लोग इनका जिक्र करना नहीं भूलते जो आज उम्र में सबसे छोटे हैं लेकिन इनका ओहदा किसी से कम नहीं।
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