क्या नाराज है प्रमुख दलों के परंपरागत मतदाता… ?

शाजापुर। वैसे तो जिले में सभी धर्म, संप्रदाय, जाति के लोग आपसी प्रेम और भाईचारे के साथ रहते है और सभी का अपनी-अपनी विचारधारा से मेलजोल रखने वाले राजनीतिक दलों से जुड़ाव भी है। जिले में रहने वाले इन सभी धर्म समाजों के इर्द गिर्द ही नेताओं का राजनीतिक ताना बाना बुना हुआ रहता है और इसी ताने बाने से लिखी जाती है सियासत की इबारत। समय-समय पर राजनीतिक फायदे के लिए इनका उपयोग भी कर लिया जाता है नेताओं द्वारा। लेकिन जब सियासत के इस ताने बाने का एक भी सीरा हाथ से फिसल जाए तो नेताओं की राजनीतिक बिसात बिखरने में देर नहीं लगती। कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है इस चुनाव के दौरान जिले में।

गौरतलब है कि जिले में विभिन्न धर्म, जाति, संप्रदाय के मतदाता अपनी-अपनी विचारधारा के राजनीतिक दलों के पक्ष में शांतिपूर्ण मतदान करते आ रहे हैं। विचारधारा के अनुसार मतदान करने वाले इन मतदाताओं को राजनीति की भाषा में परंपरागत वोटर कहा जाता है। लेकिन इस विधानसभा चुनाव में परंपरागत वोटों का जोड़ गणित बिगड़ता दिखाई दे रहा हैं प्रमुख राजनीतिक दलों का। दोनों ही प्रमुख राजनीतिक दलों को इस समस्या का सामना करना पड़ सकता है इस चुनाव में। जनचर्चा के अनुसार कांग्रेस

राजनीतिक हलचल

का परंपरागत मतदाता समुदाय विशेष हाथ का साथ छोड़ता दिखाई दे रहा है इस चुनाव के दौरान जिले में यदि ऐसा होता है तो कांग्रेस की राह आसान नहीं होगी जिले की तीनों विधानसभा सीटों पर । वहीं पिछले एक दशक से भाजपा की ओर आकर्षित हुए अजा, जजा वर्ग का भी मोहभंग होता दिखाई दे रहा है फूल से। इस वर्ग के मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है जिले में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों ही प्रमुख दल के परंपरागत वोटरों की नाराजगी मतदान दिवस तक भी जारी रहती है या रूठे परंपरागत वोटरों को मना लिया जाएगा।

कपड़े फाड़ने का असर जिले में

टिकिट वितरण को लेकर प्रदेश के दो प्रमुख कांग्रेस नेताओं के बीच हुआ कपड़ा फड़ संवाद पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय रहा। अब इस संवाद का असर जिले में भी दिखाई देने लगा है चुनाव के दौरान कांग्रेस के साहब द्वारा राजा और उनके पुत्र बाबा साहब के लिए किए गए इन शब्दों का प्रयोग समर्थकों और उनके समाज को भी नागवार गुजरता दिखाई दे रहा है चुनाव में टिकिट वितरण को लेकर

वरिष्ठ नेताओं के बीच हुए शह और मात के खेल में परिवार को घसीटना इस चुनाव में महंगा पड़ सकता है साहब को कहीं बाबा साहब को विवाद में घसीटने की साहब की गलती पार्टी के हिट विकेट का कारण ना बन जाए इस चुनाव में, क्योंकि बाबा साहब का अपना अलग ही क्रेज है उनके समर्थकों और समाज में। जिले की 3 में से 2 विधानसभा सीटों पर राजपूत समाज का अच्छाखासा वोट बैंक है जो चुनाव परिणामों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साहब का कपड़े फाड़ने वाला जवाब पार्टी को कितना नुकसान पहुंचाएगा इसका जवाब तो 3 दिसंबर को ही मिल पाएगा।

महंगा पड़ेगा अति आत्मविष्वास

प्रमुख दल होने के कारण जिले की तीनों विधानसभाओं में भाजपा-कांग्रेस के बीच सीधा और नजदीकी मुकाबला होने की संभावना है। ऐसे में किसी भी प्रमुख दल के प्रत्याषी का अति आत्मविष्वास या उनके समर्थकों की जरा सी भी चूक चुनाव परिणामों को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। हालाकि जिला मुख्यालय को छोड़ शेष 2 विधानसभाओं में निर्दलीय प्रत्याषी भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे, लेकिन निर्दलियों के भरोसे रहना प्रमुख दलों के लिए घातक भी साबित हो सकता है।

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